बहुत दर्द है सीने में मुझे लिखने से मत रोको
मेरे शब्द शब्द को बिकने दो इसे बिकने से मत रोको
मन में तूफान कोई आ जाये
दिल में प्रलय कोई छा जाये
मंडराना चाहे आंधी के बादल जो अगर अंबर पर
आ जाने दो आंधी तूफ़ान, इसे आने से मत रोको।
मेरे शब्द शब्द को बिकने दो इसे बिकने से मत रोको।
जब कंकर फेका स्थिर जल में
कुछ हलचल ऐसी होती है
चाहे हो ख़ुशी या गम कोई
अंखिया तो सदा रोती है।
बहना चाहे अंखिया जो अगर ,इसे बहने से मत रोको
मेरे शब्द शब्द को बिकने दो इसे बिकने से मत रोको।
खिलती है कली
आती खुशबु
कुछ वक़्त उसे लगता है
माला के लिए
माली भी बलि
उन फूलों की देता है।
मरने के डर से कलियों को खिलने से कभी मत रोको
मेरे शब्द शब्द को बिकने दो इसे बिकने से मत रोको।
खुल कर जीना
जी कर खिलना
कुछ वक़्त उसे लगता है
खिलने के लिए
इंसा भी बलि
बचपन की देता है।
मरने के डर से बचपन को खिलने से कभी मत रोको
मेरे शब्द शब्द को बिकने दो इसे बिकने से मत रोको।
– प्रितेश (PBM)
nice poem
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बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी पढकर अच्छा लगा।
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Thank u soo much ….glad to know that you liked it …😄😄😄
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Very nice poem
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Jabardast….bht ki acha likha h
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Thank u 😎😊
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🙂
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Congratulations!
I have nominated your blog for the “The Sunshine Blogger Award”.
More about this nomination is at
https://atrangizindagieksafar.wordpress.com/2016/09/22/2956/
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Dil ko chhu gai kavita……..!!!
“मत रोको”
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Thank u bhabhiji … 😊
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Dil ko chhu gai kavita……….!!!
“मत रोको”
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बेहतरीन ….. मज़ा आ गया
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बहुत बहुत धन्यवाद् 😊😊😊
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Superb. Heart touching
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Thank u… 😊
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Great job sir. Truly great poetry
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Thank u … 😊
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वाह ! उम्दा 👌👌
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Bahot badhiya shabd hai,prites.keep it up.-Pragya
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Thank u dear .. 😁😁😁
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